सुख और दुःख

अक्सर मनुष्य का जीवन  सुख और दुख के चक्रव्यूह में फंसा रहता है किन्तु वास्तव में सुख और दुख मानव मन की अवधारणाएं हैं, आज हर व्यक्ति को दुखी देखा जा सकता है, क्या वास्तव में हम जानते हैं कि दुखी कब होना चाहिए, नहीं हम नहीं जानते कि वास्तविक दुख क्या है। हमने रोजमर्रा की बातों को अपने अनुरुप घटित न होने पर दुखी होने का जो स्वभाव बना लिया है, वही हमारे दुख का वास्तविक कारण है जब भी कोई कार्य हमारे मन के अनुरूप नहीं होता तब हम दुखी हो जाते हैं और इस दुख में जो सुख वर्तमान में हमारे जीवन में विद्यमान हैं, उसका भी लाभ नहीं उठा पाते हैं। कुछ दुख शाश्वत हैं और समय आने पर जीवन में स्वतः ही आते हैं जैसे किसी प्रियजन की मृत्यु, आकस्मिक दुर्घटना या हानि आदि, लेकिन छोटी - छोटी बातों को  लेकर दुख करना व्यर्थ है विशेषकर उन बातों को जिन्हे प्रयासों से ठीक किया जा सकता हो। जीवन अनमोल है और एकबार ही मिलता है अतः इसके प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखें,  इसे भरपूर जिएं और हर पल को जिएं  क्योंकि जब हम जीवन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण अपना लेते हैं तो हमें अपने चारों ओर दुख और निराशा की काली चादर दिखाई देती है तथा उसके पीछे छुपा सुख रुपी सूर्य दिखाई नहीं देता और हम दुखों के सागर में गोता लगाते रहते हैं, याद रखिए सुख अर्जित करना पडता है और दुख बिना बुलाए आता है। हम जो  भी कार्य या व्यवहार जीवन में करते हैं वही हमारे सुख और दुख का निमित्त बनता है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारा दृष्टिकोण क्या था? अतः इस बात पर विचार अवश्य करिए कि हमें जीवन में किसे आमंत्रित करना है । 🙂🙂🙂🙂

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