सौभाग्य और दुर्भाग्य

अक्सर मैंने देखा है कि लोग सौभाग्य और दुर्भाग्य की बातें करते रहते हैं। क्या है ये सौभाग्य और दुर्भाग्य , वास्तव में यह सब इंसान के अपने कर्मों से निर्मित जीवन शैली है, ईश्वर ने हमें जो जीवन दिया है उसके लिए कुछ नियम भी निर्धारित किए हैं, जब हम नैतिकता का परित्याग कर सिर्फ भौतिकता के व्यामोह में फंस जाते हैं तो स्वतः ही दुर्भाग्य को आमंत्रित कर बैठते है, भौतिक संसाधनों का उपभोग करना बुरा नहीं है बल्कि सदाचरण का त्याग करना बुरा है क्योंकि कर्म का फल मिलना निश्चित है, हम पूरे जीवन जो कुछ भी करते हैं, वह जीवन को सुखी बनाने के लिए किए गए प्रयास हैं और जब अच्छे प्रयासों का फल अच्छा मिलता है तो बुरे का तो बुरा होगा ही, यह इतनी सी बात हम क्यों भूल जाते हैं, आज समाज में युवा पीढ़ी के पतन का यह सबसे बड़ा कारण है, जीवन की व्यस्तताओं ने, भौतिक संसाधनों की लालसा ने समाज का स्वरूप विकृत कर दिया है. संबधों पर स्वार्थ हावी है तो सदाचार पर दुराचार, परिवार टूट रहें हैं, रिश्ते बिखर रहें हैं. जो लोग अभी भी जीवन में संस्कारों को महत्व देते हैं, जिनके लिए इंसान महत्वपूर्ण है, वे स्वयं को सौभाग्यशाली समझते हैं और जिनके पास सब कुछ है पर परिवार का सुख नहीं वे स्वयं को दुर्भाग्यशाली मानते हैं फर्क सिर्फ इतना है कि महत्व किसे दिया गया, इसलिए देर हो उससे पहले ही चिंतन करना जरूरी है.  🙏🙏🙏🙏

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