दर्शन है यात्रा...!!

दर्शन है,
यात्रा!
द्वैत से अद्वैत की
असत्य से सत्य की।
दर्शन कराता बोध,
इहलौकिक जगत ,
के प्रपंचों की सत्यता का,
संसार की नश्वरता का।
दर्शन मार्ग है,
मिलन का ,
आत्मा का परमात्मा से!
आधार अध्यात्म का।
ईश्वरीय सत्ता ,
के आभास का।
दर्शन कराता,
साक्षात्कार,
आत्मा के सर्वव्यापी रूप का।
दर्शन से मिटता,
करणीय-अकरणीय ,
का द्वंद्व।
सांसारिकता से होता,
मोह भंग ।
यह पथ है ,
अंत से अनंत की,
अंधकार से प्रकाश की,
अज्ञान से ज्ञान की यात्रा का।
दर्शन से मिटता
देह से मोह,
उद्देश्य का होता बोध,
कर्त्तव्य-कर्म होता प्रधान।
सृष्टि के रहस्य ,
जगाते जिज्ञासा।
खुलता चिंतन का मार्ग,
लोक-कल्याण का,
मार्ग होता प्रशस्त।
इसी पथ पर ,
मिलता निर्वाण।
दर्शन है,
भगवतगीता का सार,
आत्मा का प्रसार,
चिंतकों, विचारकों,
के चिंतन का मार्ग,
भक्ति मार्ग का आधार।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

टिप्पणियाँ

  1. प्रिय अभिलाषा जी बहुत ही सुंदर है ये अध्यात्मिक रचना | जीवन की यात्रा को बहुत ही सुंदर शब्दों में लिखा आपने | सस्नेह बधाई सखी |

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