क्षणिकाएं
घिर के आई रात
छाया अंधकार
ज्यौं जीवन में दुख
अंधकार में चमकते
जुगनू
पौ फटी
छटा अंधकार
मिटने लगा दुख
फैली किरणें सर्वत्र
आश और उमंग की
जागा हर्ष
हुई भोर जीवन में
आया सुख
बरसी खुशियां
अपार
चढती दोपहरी
ज्यौ जीवन
में उन्नति याकि
बढती उम्र
ढलने लगी सांझ
होने लगा दिन का अंत
जीवन में ज्यौं आया
बुढापा
हुई रात
हुआ दिन का अंत
ज्यौं हुआ
जीवन का अंत
चक्र चलता
ये अनवरत
नहीं बदलता
नियम सृष्टि का
हम पाले रहते
वहम
भूल सत्य
असत्य का भ्रम
जीवन को बना लेते भार
ये ईश्वर का उपहार।।
अभिलाषा चौहान
अभिलाषा चौहान
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