जब मुस्काता है गुलमोहर

गर्मियों के तपते दिन ,
लाल फूलों से लदा गुलमोहर।
हर लेता है मन का संताप,
चटकती बिखरी तेज धूप में,
खिलखिला उठता है मन।
देख उसे लगता है ऐसे,
जैसे किशोरी पर आया यौवन।
या ग्रीष्म में पथिक को,
जैसे मिल जाता है संजीवन।
तन-मन हो उठे प्रफुल्लित,
मुस्काता है जब गुलमोहर।
हरे-भरे वृक्षों पर खिल उठते,
सुर्ख लाल रंग के सुमन।
उजड़ी प्रकृति की सुंदरता,
खिल उठती पाकर जीवन।
केवल वृक्ष नहीं हो तुम,
इस सृष्टि का हो जीवनधन।
ग्रीष्म तपे और तुम लहलहाए,
प्यार तुम्हारा खिलता जाए।
बेनूरी ही इस सृष्टि में,
नूर तुम्हारा निखर कर आए।
नयन नहीं हटते हैं तुमसे,
नयनों को मिलता आलंबन।
आग बरसती जब अम्बर से,
तुम भावों का करते उद्दीपन।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक




टिप्पणियाँ

  1. नूर तुम्हारा निखर कर आए।
    नयन नहीं हटते हैं तुमसे,
    नयनों को मिलता आलंबन।
    आग बरसती जब अम्बर से,
    बहुत सुंदर.... सखी

    जवाब देंहटाएं
  2. अहा! अतिसुन्दर भाव लिये उत्कृष्ट सृजन

    जवाब देंहटाएं
  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १३ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार श्वेता जी, मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🌷

      हटाएं
  4. तुम भावों का करते उद्दीपन।
    भावों को सरस सा उद्दीपन देती सरस रचना।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह!!!
    बहुत खूबसूरत गुलमोहर सी मनभावनी रचना...

    जवाब देंहटाएं
  6. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१०-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २० 'गुलमोहर' (चर्चा अंक-३६९७) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर सृजन सखी ,प्रकृति की व्यथा को बखूबी व्यक्त किया हैं आपने ,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं

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